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साँची के पुराने स्तूप

साज-सामान दुरुस्त है। दुन्दुभी, मेरी, मृदङ्ग और वीणा के भी चित्र है। चारपाइयाँ हैं, खूबसूरत तिपाइयाँ हैं; बड़ी- बड़ी नावे हैं। स्त्रियाँ पानी भर रही है; अनाज साफ़ कर । रही है, और रोटी बना रही है।

यह सबसे बड़े स्तूप की बात हुई। जो स्तूप इससे छोटा है उसका व्यास ३६ फुट है। उसमे भी चार फाटक हैं और चारों तरफ़ घेरा बना हुआ है। घेरे की उंचाई ७।। फुट है। उसके भी खम्भों पर फूलों, पत्तियो और जानवरो इत्यादि के बड़े ही सुन्दर चित्र खचित हैं। दरवाजे पर एक स्त्री हाथ में कमल लिये हुए खड़ी है। उसकी बनावट बहुत ही चित्त- बेधक है। यह स्तूप ईसा के कोई २०० वर्ष पहले का है। इस पर जो लेख हैं उनकी लिपि अशोक के समय की लिपि से मिलती है। इसके भीतर अशोक के समय मे हुए, बौद्ध धर्म के अनुयायी, दस-ग्यारह साधुओ की स्मारक चीज़े मिली हैं।

तीसरे नम्बर का स्तूप बिलकुल हो बरबाद हालत मे पड़ा है। उसका बहुत ही थोड़ा अंश शेष रह गया है। उसकी इमारत ईसा के कोई ५५० वर्ष पहले की जान पड़ती है। उसके भीतर बुद्ध के दो प्रसिद्ध चेलो के स्मारक पदार्थ मिले हैं।

और स्तूप बहुत छोटे हैं। उनमे कोई विशेषता नही; और न उनमे किसी की स्मारक कोई वस्तु ही मिली है।

बड़े स्तूप के दक्षिण-पूर्व गुप्तवंशी राजो के समय का एक छोटा सा मन्दिर है। वह कोई १७०० वर्ष का पुराना है।