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प्राचीन चिह्न


मील, इलाहाबाद से ६८० मील और नागपुर के रास्ते होकर कलकत्ते से १०६० मील है। मन्माड़ से निज़ाम के हैदराबाद को एक दूसरी रेलवे लाइन जाती है। इस लाइन का नाम “हैदराबाद गोदावरी वैला रेलवे" है। इस लाइन पर, मन्माड़ से ७१ मील दूर, औरङ्गजेब की याद दिलानेवाला औरगाबाद स्टेशन है। यलोरा के मन्दिरो को देखने के लिए इसी स्टेशन पर उतरना पड़ता है। यहाँ से यलोरा नाम का गॉव १४ मील है। इसे एलापुर, यलुरु और वेरुल भी कहते हैं। यह निज़ाम के राज्य मे है। किसी-किसी का मत है कि यलिचपुर के राजा यदु ने यलोरा को आठवे शतक मे बसाया था। यहाँ से ये गुफा-मन्दिर कोई । मील दूरvहैं और वराबर सवा मील तक चले गये हैं।

यलोरा की गुफा़ओ का उल्लेख, सबसे पहले, अरब के भूगोल वेत्ता महसूदी ने दशवे शतक मे किया। परन्तु उसने उनके शिल्प-सौन्दर्य के विषय मे कुछ न कहकर केवल उनको एक प्रसिद्ध तीर्थस्थान बतलाया। १३०६ ईसवी में, गुजरात की राज-कन्या कमला-देवी इन्ही गुफाओ में छिपी थी। अलाउद्दीन खिलजी के सेनापति मलिक काफ़ूर ने उसे यही से । हूँढ़कर देहली भेजा था। इन गुफाओं में मुसलमानों का प्रथम-प्रवेश इसी समय हुआ जान पड़ता है।

एकान्त-सेवन के लिए, निर्जन पर्वतों के बीच, ऐसी-ऐसी गुफाओ का निर्माण बौद्ध लोगो के समय से आरम्भ