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यलोरा के गुफा-मन्दिर

हुआ। वर्षा-ऋतु मे बौद्ध भिक्षु इन्हों गुफाओं मे रहकर परमार्थ-चिन्तन करते थे। बौद्धो की देखा-देखी जैनों ने भी रमणीक पार्वतीय स्थानों मे गुफा-मन्दिर बनवाये । और कहीं- कहीं बौद्धों और जैनों की स्पर्धा सी करने के लिए हिन्दुओं ने भी वही अपने मन्दिर खड़े कर दिये। यलोरा एक ऐसा स्थान है जहाँ इस देश के इन तीनों धर्मों के अनुयायियों द्वारा निर्माण किये गये, भिन्न-भिन्न तीन प्रकार के, गुफा-मन्दिर एक दूसरे के बाद, पास ही पास, बने हुए हैं। भारतवर्ष में यलोरा किसी समय प्रख्यात तीर्थ गिना जाता था, और अपने- अपने समय मे दूर-दूर से आये हुए, लाखो बौद्ध, जैन और हिन्दू यात्री यहाँ इकट्ठे होते थे। वह समय यद्यपि अब नहीं रहा, परन्तु यलोरा की गुफायें और मन्दिर अभी तक बने हुए हैं और अपने प्राचीन वैभव की गवाही दे रहे हैं। • इन' मन्दिरों मे जो नाना प्रकार के चित्र और मूर्तियाँ हैं, उनको देखकर उस समय की सामाजिक अवस्था का पता भली भॉवि लगता है। उस समय के जीव-जन्तु, उस समय के वस्त्रा- लङ्कार, उस समय के अस्त्र-शस्त्र और उस समय के आमोद- प्रमोद की प्रणाली के भी ये चित्र सच्चे सूचक हैं। धर्म से सम्बन्ध रखनेवाली बातों के तो ये प्रत्यक्ष प्रमाण हैं।

यलोरा की गुफायें एक ढालू पहाड़ी के बाहरी भाग को काटकर उसके भीतर बनाई गई हैं और उत्तर-दक्षिण कोई मील सवा मील तक चली गई हैं। जहाँ पर ये बनी हुई है