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यलोरा के गुफा-मन्दिर


किसी-किसी को, इस समय भी, इन्हें देखकर इनके सजीव होने की शङ्का होती है। एक हाथ में माला, दूसरे मे कमल- पुष्प, कन्धे में मृग-चर्म लिये हुए अभय और धर्म-चक्र-मुद्रा में ध्यानस्थ बुद्ध की मूर्तियों को देखकर मन मे अपूर्व श्रद्धा और भक्ति का उन्मेष होता है।

बौद्धो के गुफा-मन्दिरों में विश्वका सबसे अधिक प्रसिद्ध और विशाल स्तूप है। यह बौद्धों का चैत्य है। इसके आगे खुला हुआ सहन है और चारों ओर बरामदे हैं। मन्दिर का भीतरी भाग ८५ फुट १० इञ्च लम्बा और ४३ फुट २ इञ्च चौड़ा है। इसमे जो खम्भे हैं वे १४ फुट ऊँचे हैं; उनके नीचे बहुत ही अच्छा काम किया हुआ है। इस मन्दिर में बौद्ध साम्प्रदायिक मूर्तियों की बहुत अधिकता है। अनेक धार्मिक विषय, मूर्तियों द्वारा, दिखलाये गये हैं। मूर्तियों के वस्त्र और आभूषण आदि देखकर उस समय की सामाजिक अवस्था का बहुत कुछ ज्ञान होता है। यहाँ पर बौनों की कुछ ऐसी मूर्तियाँ हैं जिनको देखकर मन मे बड़ा कुतूहल उत्पन्न होता है। इन मूर्तियों का ऊपरी भाग बहुत ही स्थूल है। ये खर्वकार मनुष्य बुद्ध की सेवा मे तत्पर हैं। वज्रपाणि आदि अनेक बोधिसत्वों की भी मूर्तियाँ इस चैत्य मे हैं।

दोन-थाल में पहले दो ही खण्ड थे। इसलिए उसका नाम दोन-थाल पड़ा। परन्तु उसका एक खण्ड नीचे जमीन में दब गया था। वह १८७६ ईसवी में खोदकर बाहर निकाला