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प्राचीन चिह्न


गया। अतएव अब इसे भी तीन-थाल कहना चाहिए: क्योंकि तीन-थाल के जैसे इसमे भी तीन खण्ड हैं। दोन-थाल और तीन थाल मन्दिर, भव्यता में, यद्यपि विश्वकर्मा मन्दिर की बराबरी नही कर सकते, परन्तु लम्बाई-चौडाई में वे विश्वकर्मा से बड़े हैं। इनका कोई-कोई दीवानखाना ११८ फुट तक लम्बा है। इनमे अनेक छोटे-छोटे कमरे हैं। इनके प्रकाण्ड खम्भो को देखकर बुद्धि काम नहीं करती। वे बड़ी ही सुघराई से काटे गये है। वे चौकोर हैं और उन पर बड़ी कारीगरी की गई है। उग्रा, रत्ना, विश्वा, ब्रजधातेश्वरी, लक्ष्मी और सरस्वती आदि की मूर्तियाँ ठौर-ठौर पर बनी हुई हैं। बुद्ध और बोधिसत्व भी प्रायः प्रत्येक कमरे में विराजमान हैं। इनमे से कोई भूमि-स्पर्श-मुद्रा में हैं, कोई ललितासन-मुद्रा में, कोई पद्मासन-मुद्रा में और कोई ज्ञान-मुद्रा में। अनेक विद्याधर और अनेक देवी-देवता, इन मन्दिरो में बने हुए दिखलाई देते हैं। इस समय पत्थर का एक पुतला बनवाने के लिए हम लोगो को विलायत की शरण जाना पड़ता है। इस बात का विचार करके और डेढ़ हज़ार वर्ष के पुराने इन मन्दिरो की महामनोहर मूर्तियों को देखकर प्राचीन कारीगरों के शिल्प- कौशल की सहस्र मुख से प्रशंसा करने को जी चाहता है। इन मन्दिरो में किसी-किसी बुद्ध के सामने, और दाहने-बायें, स्त्रियों की मूर्तियाँ हैं। ये स्त्रियाँ प्रायः पद्मासन-मुद्रा में बैठी हैं; किसी-किसी के हाथ में माला और फूल है।