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प्राचीन चिह्न


दोनों ओर दो चामरधारिणी दासियाँ खड़ी हैं; सिर पर मनो- हर छत्र है; पीछे की ओर पत्तों का स्तबक है। कहीं पार्श्व- नाथ की प्रतिमा विराजमान है; उस पर स्त्रियाँ छत्र धारण किये हुए हैं; सर्पराज सिर के ऊपर अपना फण फैलाये हैं; पैरों को नाग-कन्यायें स्पर्श कर रही हैं; चारों ओर दैत्यों का समुदाय तपोभङ्ग करने के प्रयत्न में है। कही इन्द्र, ऐरा- वत पर, आसन लगाये हैं; इन्द्राणो सिंह पर सवार हैं; दास- दासियाँ उनकी सेवा में निमग्न हैं। जगह-जगह पर जिन- तीर्थड्कर अपने-अपने शासन-देवो और देवियों के सहित मन्दिर की शोभा बढ़ा रहे हैं। नेमिनाथ, गोमटेश्वर और महावीर की अनेक मूर्तियाँ हैं; जितनी हैं सब अवलोकनीय हैं; और प्रायः अच्छी दशा में हैं। शची ( इन्द्राणी ), अम्बिका और सरस्वती की भी कितनी ही चित्तग्राहिणी प्रतिमाये हैं। दिग- म्बर-जैनों के परम-श्रद्धाभाजन गोमटेश्वर के पूरे आकार के कई दिग्वस्त्रधारी स्वरूप हैं। इन मूर्तियों के अड्ग-प्रत्यङ्ग सब ऐसे अच्छे हैं कि आजकल के कुशल से भी कुशल कारीगर उनमे कोई दोष नहीं दिखला सकते। मूर्तियों के पास, कही- कहीं, उनके वाहन——सिह, गज, हरिण और कुत्ते भी हैं। किसी-किसी तीर्थङ्कर पर पुष्पवर्षा हो रही है और गन्धर्व अपने गान से उन्हें प्रसन्न कर रहे हैं। इस मन्दिर के जितने दृश्य हैं सब मनोहर हैं; और उनके निर्माण करनेवालों की शिल्पकुशलता के स्वरूपवान् प्रमाण हैं ।