पृष्ठ:प्राचीन चिह्न.djvu/३३

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यलोरा के गुफा मन्दिर

दण्डेनैव जिगाय वल्लभबल यः सिन्धुदेशाधिप
काचीशं सकलिङ्गकोशलपति श्रीशैलदेशेश्वरम् ।
शेषान् मालव-लाट-गुर्जरपतीनन्यांश्च नीत्वा वश
यः श्रीवल्लभतामवाप चरणं न्यस्य द्विषा मस्तके ॥

अर्थात् सिन्धु, काञ्चो, कलिङ्ग, कोशल, शैल, मालव, लाट, गुर्जर और चालुक्य आदि सब देशाधिपों के मस्तक पर चरण रखकर वह लक्ष्मी का प्यारा हुआ। दान्तिदुर्ग के अनन्तर उसका चचा कृष्णगज नरराज हुआ। इस कृष्णराज का नाम इसी राष्ट्रकूट-वंशीय कर्कराज राजा के दानपत्र मे आया है। यह दानपत्र इंडियन ऐटिक्वेरी की बारहवों जिल्द मे छपा है। वहाँ पर ये तीन श्लोक यलोरा के विषय मे हैं——

एलापुराचलगतादभुतसन्निवेश
यद्वीक्ष्य विस्मितविमानचरामरेन्द्राः। ।
एतत्स्वयम्भु शिवधाम न कृत्रिमे श्री-
दृष्टेदृशीति सततं बहु चर्चयन्ति ॥
भूयस्तथाविधकृतौ व्यवसायहानि-
रेतन्मया कथमहो कृतमित्यकस्मात् ।
कर्तापि यस्य खलु विस्मयमाप शिल्पी
तन्नामकीर्तनमकार्यत येन राज्ञा ॥
गङ्गाप्रवाह-हिमदीधिति-कालकूटै-
रत्यद्धताभरणकैः कृतमण्डनोऽपि।