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प्राचीन चिह्न


माणिक्य-काञ्चनपुर सरसर्पभूत्या
तत्र स्थितः पुनरभूप्यत येन शम्भुः ॥

भावार्थ——एलापुर के पर्वत पर जो मन्दिर है उसको देख- कर देवों को भी विस्मय होता है। वे उसे स्वयम्भू शिवस्थान समझकर उसकी पूजा करते हैं। क्योंकि कृत्रिम स्थान को ऐसी शोभा कभी नहीं प्राप्त हो सकती ॥ १ ॥ इस प्रकार का मन्दिर फिर बनाने में व्यवसाय की हानिमात्र है, मैं खुद नही जान सकता कि ऐसी अदभुत इमारत मैंने कैसे बनाई ?'——इस प्रकार, जिस मन्दिर के बनानेवाले कारीगर को भी आश्चर्य हुआ उसका नाम-कीर्तन उस (कृष्णराज) राजा ने कराया।।२।। गङ्गा, चन्द्रमा और कालकूट-रूपी अद्भुत आभूषां से आभूपित होने पर भी, उस मन्दिर में प्रतिष्ठित शम्भु को उस राजा ने माणिक्य और सुवर्ण आदि के विभूषणो से पुनर्वार विभूषित किया ॥३॥

यह एलापुर यलोरा ही है। इसके पास एक प्राचीन नगर के चिह्न अब तक पाये जाते हैं। वह पुराना नगर नष्ट हो गया। इस समय का यलोरा ग्राम यद्यपि पुराने नाम का अपभ्रंश है, तथापि वह एलापुर नहीं है।

दशावतार मे कोई लेख ऐसा नहीं है जिससे इसका पता लगे कि कब और किसने उसे बनाया। यह मन्दिर आठवी शताब्दी के आरम्भ का बना हुआ जान पड़ता है, और, सम्भव है, दान्तिदुर्ग ही ने इसे भी निर्माण कराया हो। क्योंकि