पृष्ठ:प्राचीन चिह्न.djvu/३८

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
३२
प्राचीन चिह्न


आतङ्क से चित्त की अजब हालत होती है। कैलाश का भीतरी भाग नाना प्रकार के रङ्गीन चित्रों से चित्रित है, बाहर भी कही-कही वैसे ही चित्र हैं। ये चित्र यद्यपि अब बुरी अवस्था मे हैं, तथापि अभी तक वे ऐसे हैं कि उनको देखकर भारत की चित्रविद्या का थोड़ा-बहुत सजीव चित्र देखने को मिलता है। पत्थर मे खुदाई का काम तो, इसमे, सभी कहीं है,——भीतर भो और बाहर भी——और ऐसा उत्तम है कि उसे देखकर बड़े-बड़े विलायती कारीगरो की अक्ल काम नही करती। जिस प्राङ्गण मे कैलाश का मन्दिर बना है उसकी लम्बाई २७६ फुट और चौड़ाई १५४ फुट है।

कैलाश के चार खण्ड हैं। मन्दिर मे कई लम्बे-लम्बे कमरे हैं, जिनमे अनगिनत मूर्तियाँ हैं। इसके शिखर एक के ऊपर एक, दूर तक, चले गये हैं। छत और खिड़कियों मे ऐसा काम किया हुआ है कि देखते ही बनता है; उसका यथार्थ वर्णन सर्वथा असम्भव है। इसके प्रकाण्ड स्तम्भ ऐसे मनोमोहक बेल-बूटों से सुसज्जित हैं कि उन्हे देखकर उनके मनुष्यकृत होने मे शङ्का होती है। गोपुर के ऊपर शिला- निर्मित महाभयानक सिह अपने बनानेवाले शिल्पियों के शिल्पचातुर्य की पराकाष्ठा प्रकट करते हैं।

इस मन्दिर मे पौराणिक दृश्यों की बहुत ही अधिकता है। उनके शतांश का भी वर्णन इस छोटे से लेख मे नहीं आ सकता। प्रायः कोई भी पौराणिक दृश्य ऐसा नहीं जिसका