चित्र इसमे न हो। दुर्गा, काली, लक्ष्मी, सरस्वती, ब्रह्मा,
विष्णु, महेश, देव, दैत्य, ऋषि, गन्धर्व, अप्सराये सभी कुछ
इसमे है। मन्दिर के एक भाग मे, एक जगह, सिहवाहिनी
चण्डिका महिषासुर का मर्दन कर रही है। पास ही नन्दी
पर आरूढ़ महादेव हैं; ऊपर दिग्पाल, देवता और गन्धर्व
आनन्द-पुलकित होकर पुष्पवर्षा कर रहे हैं। दूसरी जगह
चतुर्भुज कृष्ण कालीय की फणा पर पैर रक्खे हुए, उसकी पूंछ
को पकड़कर खींच रहे हैं। तीसरी जगह नागराज को पैर
से दबाये हुए शङ्ख, चक्र प्रादि आयुधधारी वराह पृथ्वी को
उठा रहे हैं। कहीं त्रिविक्रम हैं; कही नृसिह हैं, कही शेष-
शायी विष्णु हैं। मन्दिर के दूसरे भाग मे शिव की कोई
२० प्रकार की मूर्तियाँ भिन्न-भिन्न दृश्यों की व्यजक हैं। कहीं
त्रिशूलधारी काल-भैरव पार्वती को लिये हुए खड़े हैं; कहीं
षड्भुज सदाशिव त्रिपुरासुर से युद्ध की तैयारी कर रहे हैं;
कही धूर्जटि हर, जटा फटकारे, डमरू, त्रिशूल और भिक्षा-पान
लिये हुए, सम्मुख अम्बिका की ओर देख रहे हैं; कहों अर्द्ध-
नारीश्वर नर-नारियों को दर्शन दे रहे हैं। नन्दी की अनेक
प्रतिमायें हैं; कितनी ही शिव-मूर्तियों के पास नन्दीजी विराज-
मान हैं। परन्तु मन्दिर के सामने नन्दि-मण्डप के भीतर
जो नन्दी की मूर्ति है वह सबसे अच्छी और सबसे बड़ी है।
कही-कहीं भृङ्गो आदि और भी गण हैं। ब्रह्मा और वीरभद्र
की कई प्रतिमायें हैं।
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मलोया के गुफा-मन्दिर