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प्राचीन चिह्न

इस मन्दिर के शिखरों पर और बाहर भी अनेक मनो-मोहिनी मूर्तियाँ हैं। किसी-किसी जगह के मूर्ति-समुदाय का दृश्य बहुत ही चित्ताकर्पक है। इसमे युद्ध के भी दृश्य हैं। उनमे से कुछ इतने अच्छे हैं कि उनका फोटोग्राफ लेकर लोगों ने अपने पास रक्खा है। जीव-जन्तुओ की भी मूर्तियाँ कैलाश मे बहुत हैं। कितने ही सिंह और हाथी भारत की १२०० वर्ष की पुरानी शिल्पकला के उत्कर्ष का स्मरण करा रहे हैं। मन्दिर के गोपुर के ऊपर जो खर्वाकार बैानों की मूर्तियाँ, शङ्ख बजाते हुए, बनाई गई हैं वे बड़ी ही कौतुकावह हैं।

कैलाश के पास ही लकेश्वर नामक मन्दिर है। बर्व्यस साहब ने इसके खम्भों की बड़ी बड़ाई की है। वे उनको बहुत सुन्दर और बहुत मज़बूत बतलाते हैं। उनके चित्र से भी यह बात साबित होती है। इस मन्दिर की कोई-कोई मूर्तियाँ कैलाश की मूर्तियों की भी अपेक्षा अधिक सुन्दर हैं। उनके गढ़ने मे शिल्पियों ने अपने कौशल की सीमा का अन्त कर दिया है। बड़ी सूक्ष्मता और सफ़ाई के साथ वे निर्मित हुई हैं। शङ्कर का ताण्डव-नृत्य, वराह का पृथ्वी-उत्तोलन, पुत्र और पत्नी-युग्म के साथ सूर्य का उदय——ये सब दृश्य बहुत ही अवलोकनीय हैं । उमा और गङ्गा, तथा ब्रह्मा और विष्णु आदि की भी बहुत सी मूर्तियाँ इसमे हैं। खेद है, मुसलमानो ने इस मन्दिर को कई जगह छिन्न-भिन्न कर डाला है।