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यलोरा के गुफा-मन्दिर

रामेश्वर नामक गुफा-मन्दिर इसलिए प्रसिद्ध है कि उसके अग्र-भाग में बहुत बड़ी कारीगरी की गई है। वहाँ पर जो काम है, यलोरा के समग्र मन्दिर-समुदाय से अच्छा है। इसके चारों ओर अनेक प्रकार के पशुओं की जो मूर्तियाँ हैं उनमे हाथियों की प्रधानता है। चामुण्डा, इन्द्राणो, वाराही, लक्ष्मी, कौमारी, माहेश्वरी और ब्राह्मी इन सप्त मातृकाप्रो की मूर्तियाँ इस मन्दिर में देखने लायक हैं। इनके सिवाय कार्ति- केय, गणेश और महाकाल आदि की भी प्रतिमाओं ने रामे- श्वर की शोभा बढाई है।

रामेश्वर के पास ही नीलकण्ठ का मन्दिर है। सप्तमातृका, गणपति, शिव और गङ्गा की मूर्तियाँ इसमे प्रधान हैं। इसका नन्दि-मण्डप कुछ उजाड़ दशा में है।

सूरेश्वर-मन्दिर का दूसरा नाम कुम्हार-वाड़ा है। यह मन्दिर बड़ा है। इसमे कई दालाने हैं। इसमे रथारूढ़ सूर्य की एक विशाल मूर्ति है। इसी से इसका नाम सूरेश्वर है। सूर्य का एक नाम सूर भी है। इसके खम्भों मे ब्रैकेट भी हैं। इन ब्रैकेटों के सामने एक पुरुष और एक स्त्री की उड़ती हुई प्रतिमायें हैं।

धुमार लेन अथवा सीता की चावड़ी यलोरा के हिन्दू- मन्दिरों में सबसे अन्तिम मन्दिर है। इसके भीतर विशाल खम्भों को देखकर बड़ा ही आश्चर्य होता है। उत्तर की ओर यह छोर मे है। यलिफंटा टापू, जो बम्बई के पास है, वहाँ