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ईसापुर के यूप-स्तम्भ


दिन, भारद्वाज-गोत्रीय, माण ( ? ) वेदपाठी ब्राह्मण रूद्रिल के पुत्र द्रोणल ने द्वादशरात्रि-पर्यन्त यज्ञ करके इस यूप की स्थापना की। अग्निदेव (गार्हपत्य, दक्षिणाग्नि और आहवनीय ) प्रसन्न हों।

इस लेख का “माण" शब्द ठीक-ठीक नहीं पढ़ा गया । इस लेख को पुरातत्त्ववेत्ता बड़े महत्त्व का समझते है। कुशान- वंशीय राजा कनिष्क और हुविष्क के बीच मे एक और भी राजा हो गया है। उसका ऐतिहासिक प्रमाण अब तक ठीक- ठीक उनको न मिला था। इस लेख से वह मिल गया और मालूम हो गया कि उस राजा का नाम वाशिष्क था। इसी राजा के राज्यकाल में द्रोणल ने, मथुरा मे, १२ रात्रि-पर्यन्त यज्ञ करके, पूर्वोक्त यूप की प्रतिष्ठा की थी। उस ज़माने मे ऐसी यूप-स्थापना की चाल थी। ये यूप एक प्रकार की याद- गार समझे जाते थे। जो यज्ञ करता था वह उसकी याद बनी रखने के लिए यूप अवश्य गाड़ देता था। इसी से कालि- दास ने रघुवंश मे लिखा है——

(१) ग्रामेष्वात्मविसृष्टेषु यूपचिह्न षु यज्वनाम्—— सर्ग १

(२) अष्टादशद्वीपनिखातयूप——सर्ग ६

(३) वेदिप्रतिष्ठान्वितताध्वराणां

यूपानपश्यच्छतशो रघूणाम्-सर्ग १६

इसी वाशिष्क राजा के राज्यकाल का एक खण्डित शिलालेख साँची में भी मिला है। वह अब तक ठोक-ठीक न