पृष्ठ:प्राचीन चिह्न.djvu/४७

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ईसापुर के यूप-स्तम्भ


में। इस तरह की संस्कृत मे खुदा हुआ जो सबसे पुसना शिला-लेख अब तक मिला है वह १५० ईसवी के आस-पास का है। वह क्षत्रप रुद्रदामा के समय का है और गिरनार की एक पर्वत-शिला पर खुदा हुआ है। ईसापुर का प्रस्तुत लेख उससे भी सौ-पचास वर्ष पुराना है। अतएव सिद्ध है कि उस समय, अर्थात् सन् ईसवी के कुछ समय आगे-पीछे, संस्कृत का यहाँ अच्छा प्रचार था। उस समय के शिलालेख जो प्राकृत या प्राकृतमिश्रित संस्कृत ही में मिले हैं, इसका कारण यह मालूम होता है कि वे प्रायः सब के सब बौद्धो और जैनों के हैं। ये लोग उस ज़माने में प्राकृत के पक्षपाती और संस्कृत के प्रचार के विपक्षी थे। इसी से इनके शिलालेखों में संस्कृत की अवहेलना हुई है। ब्राह्मण लोग आज से दो हज़ार वर्ष पहले भी संस्कृत ही का विशेष आदर करते थे और उसी मे शिलालेख खुदवाते और ग्रन्थ-रचना करते थे। ईसापुर मे यज्ञ करनेवाला द्रोणल ब्राह्मण ही था। इसी से उसके खुदवाये हुए लेख मे संस्कृत ही का प्रयोग हुआ है। विशुद्ध संस्कृत मे प्राप्त हुआ यही अब तक सबसे पुराना शिला- लेख है। सम्भव है, और भी ऐसे ही शिलालेख पृथ्वी के पेट मे दबे पड़े हों और कालान्तर मे पाये जायें।

यूपों का वर्णन शतपथ ब्राह्मण मे विस्तारपूर्वक है। यूप बहुत करके खदिर ( कत्थे ) के वृक्ष का होता था। “था" इसलिए कि इस समय एक-आध भूले-भटके याज्ञिक को छोड़-