पृष्ठ:प्राचीन चिह्न.djvu/५३

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
४७
प्रयाग-प्रान्त के प्राचीन ऐतिहासिक नगर


पर इसकी विशेप उन्नति राजा चक्र के समय से हुई। आज से कोई ढाई हजार वर्ष पूर्व परन्तप का पुत्र उदयन यहाँ राज्य करता था। राजा उदयन-सम्बन्धिनी कथा पुराणों मे भी है, पुराने काव्यों और नाटकों में भी है और कथा-सरित्सागर मे भी है। कालिदास ने अपने मेघदूत मे इसी उदयन का उल्लेख किया है। बौद्धो के धम्मपद नामक ग्रन्थ में अवन्ति- नरेश की कन्या वासवदत्ता और कौशाम्बी के अधीश्वर उदयन के विवाह की वार्ता बड़े विस्तार से लिखी गई है। बौद्धो के महावंश और ललितविस्तर नामक ग्रन्थों मे भी कौशाम्बी के वैभव का बड़ा ही महत्त्वदर्शक वर्णन है। उनमे लिखा है कि प्राचीन समय मे कौशाम्बी की गिनती भारत के १६ प्रधान नगरों मे थी। राजा उदयन ने बुद्ध की एक मूर्ति चन्दन की बनवाई थी। हेन-सांग के समय तक वह कौशाम्बी के राज- महलों में विद्यमान थी। उसके दर्शन के लिए हज़ारो कोस दूर के देशी और विदेशी बौद्ध वहाँ आते थे। कौशाम्बी मे किसी समय बड़ा व्यापार होता था। यमुना के किनारे होने के कारण करोड़ों रुपये का माल वहाँ नावों से आता और वहाँ से श्रावस्ती, साकेत, प्रतिष्ठान और पाटलिपुत्र को जाता था।

कौशाम्बी मे कितने ही विहार और स्तूप थे। महाराज उदयन के महल की उँचाई ६० फुट थी। इस नगर के इर्द-गिर्द, दो-दो चार-चार मील की दूरी पर, बौद्धों के चार प्रसिद्ध विहार थे। इस स्थान की प्रसिद्धि और समृद्धि को देखकर ही अशोक