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प्राचीन चिह्न


ने यहाँ पर एक ऊँचा स्तम्भ बनवाया था और उस पर अपने आदेश खुदाये थे। प्राचीन इतिहास और इमारतों की खोज करनेवाले विद्वानो का अनुमान है कि इलाहाबाद के किले में जो स्तम्भ इस समय है वह पहले कौशाम्बो ही में था।

इस समय कौशाम्बी के प्राचीन वैभव की गवाही देने- वाला वहाँ के किले का धुस्स मात्र रह गया है। उसका घेरा चार मील से भी कुछ अधिक है। भग्नावशिष्ट दीवार की उँचाई अब भी ३५ फुट है। पर बुर्जे ५० फुट तक ऊँची हैं । ये सब मिट्टी की हैं। इस नष्ट-विनष्ट गढ के भीतर एक और पुराना चिह्न अब तक विद्यमान है। यह पत्थर का एक ऊँचा स्तम्भ है। इसकी वर्तमान उँचाई केवल १४ फुट है। पर, उसके पास उसके कई टूटे हुए टुकड़े भी पड़े हैं। जनरल कनिहम ने उसके आस-पास सात-आठ फुट तक खोदा, पर उसकी जड़ न मिली। टूटे हुए टुकड़ों की उँचाई और आठ फुट नीचे की खुदाई को जोड़ने से इस स्तम्भ की उंचाई २८ फुट होती है। परन्तु इस तरह के अन्यान्य स्तम्भों की उँचाई को देखते यह भी ३६ फुट से कम ऊँचा न रहा होगा। यह स्तम्भ भी बौद्धों के समय का जान पड़ता है। इस पर अशोक का तो कोई लेख नहीं, पर और कितने ही लेख उत्कीर्ण हैं। उनमे से कई बहुत पुराने हैं। एक गुप्त-वंशी नरेशों के समय का है। एक और उससे भी पुराना है। इस स्तम्भ को लोग अब “राम की छड़ी" कहते हैं।