इस कौशाम्बी नगरी में न अब कोई विहार है, न स्तूप है, और न अभ्रकष प्रासाद ही है। है अब मिट्टी के धुस्स और एक टूटा-फूटा स्तम्भ । कौशाम्बी का नाम और उसके प्राचीन वैभव का उल्लेख-मात्र प्राचीन ग्रन्थों और शिलालेखों में है। उसकी प्राचीन समृद्धि का सबसे अधिक स्मरण दिलानेवाला पूर्वोक्त स्तम्भ है। काल बड़ा बली है। उसके प्रभाव से अनन्त-वैभव-सम्पन्न नगर मिट्टी मे मिल गये और जहाँ अखण्ड जगल थे वहाँ बड़े-बड़े किले और महल खड़े हो गये।
शृङ्गिवीरपुर
इस नगर का वर्तमान नाम सिगरौर है। यह जगह इला- हाबाद से १८ मील दूर, गङ्गा के किनारे, है। यहीं शृङ्गो ऋषि का स्थान है। किसी समय यह बहुत बड़ा नगर था। पर गङ्गाजी के गर्भ मे चला गया। प्राचीन समय की यहाँ केवल अब ईटें मात्र कही-कही देख पड़ती हैं। वर्तमान चबूतरे, स्थान और मन्दिर सब नये हैं। महम्मद मदारी नामक एक मुसलमान की कत्र भी यहाँ है।
कोड़ा
कोड़ा भी एक बहुत पुरानी बस्ती है। उसका प्राचीन
नाम कर्कोटक-नगर है। पुराणों में लिखा है कि वहाँ पर
अपने पिता दक्ष प्रजापति के यज्ञ मे मरनेवाली सती का एक
हाथ गिरा था। वहाँ पर कालेश्वर का एक प्रसिद्ध मन्दिर
है। उसके नामानुसार उसे कालनगर भी कहते हैं। गङ्गा