अज्ञात है। सोमेश्वर और वेनीमाधव के प्रसिद्ध मन्दिर यहीं पर हैं। इन मन्दिरों की कोई-कोई मूर्तियाँ महत्त्व की हैं।
प्रतिष्ठानपुर
प्रतिष्ठानपुर के प्राचीनत्व के बोधक अब केवल मिट्टी के
पुराने बर्तनों के टूटे-फूटे टुकड़े, मिट्टी और ईटों के ऊँचे-ऊँचे
धुस्स, और गुप्तवंशी नरेश समुद्रगुप्त और हंसगुप्त के किलों
के टीले मात्र हैं। जिस जगह पर प्राचीन प्रतिष्ठानपुर था
वहाँ अब नई और पुरानी झूसी नाम के दो गाँव हैं। झुँसी
गङ्गा के उत्तरी तट पर है और इलाहाबाद से केवल तीन मील
है। प्रतिष्ठानपुर चन्द्रवंशी राजों की बहुत दिन तक राज-
धानी था। प्रसिद्ध राजा पुरूरवा यहीं हुआ है। कालिदास
ने अपने मालविकाग्निमित्र नाटक में जिस प्रतिष्ठानपुर का
उल्लेख किया है वह स्थान यही है। कोई ४५ वर्ष हुए,
राजा कुमारगुप्त के समय की २४ सुवर्ण-मुद्राये यहाँ मिली
थीं। जैसे सारनाथ प्रादि स्थानों मे खोदने पर सैकड़ों चीजें
पुराने समय की मिली हैं, वैसे ही, यदि यहाँ पर भी खुदाई
हो तो, बहुत सी चीज़ों के मिलने की सम्भावना है। राजा
त्रिलोचनपाल का एक दानपत्र, जिस पर विक्रम संवत् १०८४
खुदा हुआ है, यहाँ मिल भी चुका है। इस संवत् तक प्रति-
ष्ठानपुर का वैभव विशेष क्षोण नहीं हुआ था। पर इसके
बाद ही इसकी उतरती कला आरम्भ हुई। धीरे-धीरे काल
ने इसकी वह गति कर डाली जिसमें यह इस समय वर्तमान