पृष्ठ:प्राचीन चिह्न.djvu/६२

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
५३
प्राचीन चिह्न


तक बना हुआ है; परन्तु, जब से बुंदेलों का प्राधान्य इस प्रदेश में हुआ तब से, उनके नामानुसार, इस प्रान्त का नाम बदलकर बुंदेलखण्ड हो गया। जनरल कनिहाम ने अपनी आरकियालाजिकल रिपोर्ट में, जहाँ से हमको इस लेख की सामग्री मिली है, इस विषय का खूब विचार किया है।

इसका ठीक-ठोक पता नही चलता कि खजुराहो में चॅदेलों के पहले किस-किस वंश के नरेशों ने राज्य किया। परन्तु कनिहाम साहब का अनुमान है कि ह्वेन साग के समय में वहाँ ब्राह्मणो का राज्य था, उसके अनन्तर गुप्त-वंशी राजों का हुआ, और सबसे पीछे चंदेलो का। ब्राह्मण- राजों के समय के दो-एक मठ बहुत ही टूटी-फूटी दशा में अब तक विद्यमान हैं। किसी-किसी मठ के एक-आध पत्थर पर बौद्ध-धर्म का सूचक “ये धर्महेतुप्रभवा:" वाक्य भी खुदा हुआ दिखाई देता है। गुप्त-वंशी राजों के राजत्व का प्रमाण उनके सिक्को और शिलालेखों से मिलता है। परन्तु चॅदेलों के राजत्व के निशान औरों की अपेक्षा बहुत हैं, और बडे-बड़े हैं। ये निशान खजुराहो के विशाल मन्दिर हैं।

अनुमान है कि गज़नी के महमूद की चढ़ाई के समय से खजुराहो की शोभा क्षीण होने लगी । उस समय खजुराहो में नन्दराय नामक राजा था। खजुराहो मैदान में था, इस- लिए वहाँ के किले में रहने से शत्रु से पराजय पाने का अधिक डर था। इसी लिए नन्दराय खजुराहो से कालिञ्जर के