मन्दिर की शोभा को कुछ कम कर देती हैं। उनके कारण
मन्दिर का मनोहर दृश्य किसी कदर छिप जाता है।
इस मन्दिर में दो शिलालेख हैं। एक ६६६ ईसवी का, दूसरा १००१ ईसवी का। यह मन्दिर चन्देल राजा धङ्ग का बनवाया हुआ है। आदि में जो शिवलिङ्ग इस मन्दिर में स्थापित किया गया था वह मरकतमय था; परन्तु उस मार- कतीय लिङ्ग का कुछ पता नहीं। यात्रियो और कारीगरों के अनेक नाम इस मन्दिर के पत्थरों पर उत्कीर्ण हैं। उनमे से दो-चार नाम ये हैं——श्रीजस, रान, श्रीदेवनन्द, श्रीदेवादित्य, ओमहानाग, और श्रीजगदेव ।
खजुराहो में इतने प्राचीन मन्दिरो को देखकर आश्चर्य होता है। जान पडता है कि मुसलमानों के आवागमन मार्ग से दूर होने के कारण उनके हथौडे, गोलियाँ और फावड़े इन तक नहीं पहुँच सके। ऐसे-ऐसे मन्दिरों को समृल खोद डालने से, जब इन लोगों के लिए स्वर्ग और मर्त्य, दोनों लोकों में, ऊँचे-ऊँचे महल और मस्जिदें बिना प्रयास तैयार हो सकती हैं तब यदि वे वहाँ तक पहुँच सकते तो थोडा-बहुत पुण्य-सञ्चय किये बिना कभी न रहते।
चतुर्भुज का मन्दिर भी, यहाँ पर, बड़े मन्दिरों में से है। इसे कोई-कोई रामचन्द्र का मन्दिर कहते है और कोई-कोई लक्ष्मण का। परन्तु तीनों नाम विष्णु ही के वाचक हैं। इसमें जो प्रधान मूर्ति है वह चतुर्बाहु है। इसलिए