इस मन्दिर का नाम चतुर्भुज अधिक सार्थक है। इसकी
लम्बाई-चौड़ाई लगभग उतनी ही है जितनी विश्वनाथ के
मन्दिर की है। और बातो में भी यह उसी के अनुरूप है।
इसमे भी सामने और चारों कोनों में एक-एक छोटा मन्दिर
है। काम भी इसका प्रायः उसी मन्दिर का जैसा है।
हॉ, एक बात की इसमे कमी है। इसमें मूर्तियों की
प्रचुरता नहीं है। सिर्फ १७० मूर्तियाँ भीतर और २३० बाहर
हैं। इसके चबूतरे की दीवारों पर नक्काशी का काम बहुत
अच्छा है। कही पर बनैले सुअरों का शिकार किया जा रहा
है; कहीं पर सजे हुए हाथियों और घोड़ों की पातें खड़ी हैं;
कही पर अनेक प्रकार के शस्त्रों से सजिव सिपाही चले जा
रहे हैं। इस मन्दिर में भी एक लेख है। वह ६५४ ईसवी
का खुदा हुआ है। उसमें चन्देलवंशी राजों के नाम,
यशोवर्मा और उसके पुत्र धङ्ग तक, हैं। खजुराहो के मन्दिर
छत्रपुर की रियासत में हैं। जिस समय महाराजा छत्रपुर ने
इस मन्दिर की मरम्मत कराई उस समय यह शिलालेख
इस मन्दिर के नीचे एक जगह गड़ा हुआ मिला। यह बात
१८४३ ईसवी के बाद की है; क्योंकि उस समय तक इस
लेख का कोई पता न था। इस लेख के अनुसार यह
मन्दिर राजा यशोवर्मा ने बनवाना आरम्भ किया; पर उसकी
मृत्यु के अनन्तर, उसके पुत्र धङ्ग के राजत्वकाल मे, यह
समाप्ति को पहुंचा।
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खजुराहो