छोटा सा लेख, है जिसमें लिखा है कि राजा धन के राज्यकाल में भव्य पाहिल ने,९५४ ईसवी में, इस मन्दिर के लिए कई वाग सङ्कल्प कर दिये। उसी लेख में, इस मन्दिर का नाम जिन-नाथ का मन्दिर भी लिखा है। इसकी लम्बाई ६० फुट और
चौड़ाई ३० फुट है। एक धनी जैन ने इसकी मरम्मत करा
दी है। इससे यह अब बिलकुल नया मालूम होता है। देखने
में यह मन्दिर बहुत सुन्दर, सुडौल और दर्शनीय है। इसके
भी बाहर बहुत सी मूर्तियाँ हैं। जैन मूर्तियो के बीच में हिन्दू-
देव और देवियों को भी स्थान मिला है। यात्रियों ने इस मन्दिर
पर लम्बे-लम्बे लेख खोद डाले हैं। इन यात्रियो में दो एक
राजपुत्र भी थे।
आदिनाथ और पार्श्वनाथ के मन्दिर यद्यपि छोटे हैं; परन्तु औरों की अपेक्षा कुछ अधिक पुराने हैं।
इन मन्दिरों के सिवा, खजुराहो में, छोटी-बड़ी सैकड़ों मूर्तियाँ हैं। उनमे से कुछ खेडहरों में पड़ी हैं, कुछ मन्दिरों के आस-पास रक्खी हैं; और कुछ तालाबो के किनारे रख दी गई हैं। यहाँ तक कि बड़े-बड़े पेड़ों के नीचे भी वे विराज रही हैं। इन मूर्तियों में से एक मूर्ति हनूमान की है। उसके पीठक पर एक छोटा सा लेख, ८६८ ईसवी का, है। चन्देल- वंशी राजों के समय के शिलालेखों में यह सबसे पुराना है।
[ मई १९०७
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