पृष्ठ:प्राचीन चिह्न.djvu/८

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प्राचीन चिह्न


लगता है। उसके चित्र यह जाहिर करते हैं कि जिस समय ये स्तूप बने हैं उस समय, नहीं उससे भी पहले, इस देश के निवासी शिल्पकला. साधारण सभ्यता और विद्या में बहत बढ-चढे थे। जब कोई कम सभ्य या असभ्य जाति किसी सभ्य जाति का संसर्ग पाती है तब वह तत्काल ही उसकी सभ्यता की नकल नहीं करने लग जाती। इसके लिए कुछ समय दरकार होता है। अतएव, यदि, क्षण भर के लिए, यह भी मान ले कि ग्रीक ही लोगों ने हमको घर बनाना सिखलाया, तो यह कदापि नहीं माना जा सकता कि हमारा और उनका योग होत ही उन्होंने मूर्तिया खोदने और दीवार उठाने पर सबक देना शुरू कर दिया ! ऐसा होना खयाल ही में नहीं आ सकता। अँगरेज़ों को इस देश में आये कई सी वर्ष हुए। पर, हमने, इतने दिनों में कितना कला-कौशल सीखा? इस देश मे पुराने मन्दिरों और पत्थर के कामो के जो नमूने जहा-तहाँ रह गये हैं उनका ढङ्ग ही निराला है। अतएव वे किसी की नकल नहीं हैं। वौद्धों के पुराने स्तूपो को देखकर कनिंदाम और फरगुसन इत्यादि विद्वानों को उनकी प्राचीनता और उनके शिल्पनिर्माण की अद्भुतता पर बडा आश्चर्य हुआ है। उन्होने यह साफ़-साफ़ कबुल कर लिया है कि भारतवर्प ने इस विद्या मे बहुत बड़ी उन्नति की थी और जब अँगरेजों के पूर्वज वन में वनमानुसों के समान रहते थे तब भारतवर्षवाले ऐसे स्तूप, मन्दिर और प्रासाद बनाते थे