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प्राचीन चिह्न


निकल भागे। एक जैन मन्दिर के भीतर रीछ के बाल मिले और ऐसे चिह्न दिखलाई दिये जिससे सूचित होता था कि वहाँ पर कुछ ही देर पहले एक रीछ था जो “हॉका" की आवाज़ से निकल गया था।

गुप्त-वंशी राजो के समय का यहाँ पर एक प्राचीन मन्दिर है। वह कोई एक हजार वर्ष का पुराना है। उसका नाम दशावतार-मन्दिर है। उसके चारों तरफ़ विष्णु के दश अवतारो की मूर्तियाँ थी। इसी लिए उसका नाम दशावतार पड़ा। वह लाल पत्थर का बना है। उसके चारों तरफ़ पहले बरामदा था, परन्तु वह अब गिर पड़ा है। मन्दिर के द्वार पर जो काम है वह बहुत अनमोल है। उसके ऊपर गड्ढा और यमुना की मूर्तियाँ हैं; मध्य में विष्णु की मूर्ति है, जिसके ऊपर शेष अपने फनों की छाया किये हुए हैं। इसके सिवा स्त्री-पुरुषो और खर्वाकार बौनों की कई सुन्दर-सुन्दर मूर्तियाँ हैं। यह सामने की बात हुई। शेष तीन तरफ़ विष्णु के तीन अवतारो की मूर्तियाँ हैं। एक जगह शेष पर नारायण सो रहे हैं, लक्ष्मी उनकी पाद-सेवा कर रही हैं; पञ्च पाण्डव और द्रौपदी नीचे खड़े हैं; ब्रह्मा, शिव और इन्द्र आदि देवता ऊपर हैं। दूसरी जगह राम-लक्ष्मण की मूर्तियाँ हैं; वे जङ्गल में हिरन और सिंह आदि हिंस्र जीवो के बीच में बैठे हैं। तीसरी जगह गज को ग्राह की पकड से छुड़ाने के लिए गरुड पर सवार होकर विष्णु भगवान् आ रहे हैं। जितनी मूर्तियाँ