हैं सब अच्छी हैं। नीचे, चबूतरे की दीवारों पर भी, रामा-
वतार से सम्बन्ध रखनेवाली कथानो की सूचक कितनी ही
मूर्तियाँ हैं। पहले बहुत थीं; परन्तु बिगड़ते-बिगड़ते अब कम
रह गई हैं। बरामदे के चार खम्भे अभी तक बने हुए हैं।
उन पर ऐसा साफ़, सुथरा और बारीक काम है कि देखकर
आश्चर्य होता है। मन्दिर के शिखर का कुछ भाग गिर
पडा है; कुछ वाक़ी है। मन्दिर के भीतर विष्णु की मूर्ति का
पता नही; परन्तु उसकी जगह पर शिव का एक लिङ्ग रक्खा
हुआ है। विष्णु की मूर्ति का आवरण मात्र शेष है। यह
पुराना और प्रसिद्ध मन्दिर बुरी हालत में है। शिखर की
दशा बहुत बुरी है। बरामदे का निशान तक नहीं रहा।
खम्भे गिर गये हैं।
इसके पास ही बहुत पुराने जैन-मन्दिरों के कुछ चिह्न हैं। वे मन्दिर, इस समय, प्रायः बिलकुल ही नष्ट हो गये है।
दशावतार-मन्दिर से कुछ दूर पर एक गुफा है। उसका नाम
है सिद्ध की गुफा। पहाड़ी के ऊपर, किले से गुफा तक, चट्टान
को काटकर सीढ़ियाँ बनाई गई हैं। वे अब तक बनी हुई हैं।
गुफा पहाड़ी को काटकर बनाई गई है। उसमे तीन दरवाजे
हैं। गुफा के बाहर, पहाडी पर, महिषासुरमर्दिनी देवी की एक
मूर्ति है। यहाँ पर एक शिलालेख भी छोटा सा है। यह
गुफा अधदनी ही छोड़ दी गई है। यहाँ से जो सीढ़ियाँ
बेतवा की तरफ़ काटी गई हैं वे भी नदी तक नहीं पहुंची।