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तृतीय सर्ग

कुबलया सम मत्त - गजेन्द्र से ।
भिड नहीं सकते दनुजात भी ।
वह महा सुकुमार कुमार से ।
रण - निमित्त सुसज्जित है हुआ ।।६०।।

विकट - दर्शन कजल - मेरु सा ।
सुर गजेन्द्र समान पराक्रमी ।
द्विरद क्या जननी उपयुक्त है ।
यक पयो - मुख बालक के लिये ॥६१।।

व्यथित हो कर क्यो विलखूॅ नहीं ।
अहह धीरज क्योकर मैं धरूँ ।
मृदु - कुरंगम शावक से कभी ।
पतन हो न सका हिम शैल का ॥६२॥

विदित है वल, वज्र -शरीरता ।
विकटता शल तोशल कूट की ।
परम है पटु मुष्टि - प्रहार में ।
प्रवल मुष्टिक सज्ञक मल्ल भी ॥६३॥

पृथुल - भीम - शरीर भयावने ।
अपर हैं जितने मल कस के ।
सव नियोजित है रण के लिये ।
यक किशोरवयस्क कुमार से ॥६४॥

विपुल वीर सजे बहु - अस्त्र से ।
नृपति - कंस स्वय निज शस्त्र ले ।
विवुध - वृन्द विलोडक शक्ति से ।
शिशु विरुद्ध समुद्यत है हुये ॥६५॥