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प्रियप्रवास

बूढ़े के ए वचन सुनके नेत्र मे नोर आया ।
ऑसू रोके परम मृदुता साथ अकर बोले ।
क्यो होते है दुखित इतने मानिये बात मेरी ।
आ जावेगे विवि दिवस मे आप के लाल दोनो ॥२९॥

आई प्यारे निकट श्रम से एक वृद्धा-प्रवीणा ।
हाथो से छू कसल-मुख को प्यार से ली बलाये ।
पीछे बोली दुखित स्वर से तू कही जा न बेटा ।
तेरी माता अहह कितनी बावली हो रही है ॥३०॥

जो रूठेगा नृपति व्रज का बासही छोड़ दूंँगी ।
ऊँचे ऊँचे भवन तज के जंगलो मे वसूंगी ।
खाऊँगी फूल फल दल को व्यजनो को बनूंँगी ।
मै ऑखो से अलग न तुझे लाल मेरे करूँगी ॥३१॥

जाओगे क्या कुँवर मथुरा कंस का क्या ठिकाना ।
मेरा जी है बहुत डरता क्या न जाने करेगा ।
मानूॅगी मै न सुरपति को राज ले क्या करूँगी ।
तेरा प्यारा - वदन लख के स्वर्ग को मै तजूॅगी ॥३२॥

जो चाहेगा नृपति मुझ से दंड दुॅगी करोड़ो ।
लोटा थाली सहित तन के वस्त्र भी बेच दुॅगी ।
जो मॉगेगा हृदय वह तो काढ़ दुॅगी उसे भी ।
बेटा, तेरा गमन मथुरा मै न ऑखो लखूॅगी ॥३३॥

कोई भी है न सुन सकता जा किसे मैं सुनाऊँ ।
मै हूँ मेरा हृदयतल है है व्यथाये अनेको ।
बेटा, तेरा सरल मुखड़ा शान्ति देता मुझे है ।
क्यो जीऊँगी कुँवर, वतला जो चला जायगा तू ॥३४॥