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प्रियप्रवास

नीचे फूले कुसुम तरु के जो गई भक्त होवें ।
किम्बा कोई उपल-गठिना-मूर्ति हो देवता की ।
तो डालो को परम मृदुता मंजुना में हिलाना ।
औ यो वर्षा कर कुसुम की पूजना पृजिनों को ॥५४॥

तू पावगी वर नगर में एक भूखण्ड न्यारा ।
शोभा देने अमित जिसमे राज-प्रसाद होंगे ।
नशानो में परम - सुषमा है जहाँ संचिता सी ।
छीने लेवे सग्यर जहाँ वस्त्र की स्वच्छता है ।।५५।।
 
तू देखेगी जलद-तन को जा वहीं तद्गगता हो ।
होगे लोने नयन उनके ज्योति - उकीर्णकारी ।
मुद्रा होगी वर - बदन की मूर्ति सी सौम्यता की ।
सीधे साधे वचन उनके रिक्त होंगे सुधा में ॥५६॥

नीले फूले कमल दल सी गात को श्यामता है ।
पीला प्यारा वसन कटि में पेन्हते हैं फवीला ।
छूटी काली अलक मुख की कान्ति को है बटाती ।
सद्वस्त्रों में नवल - तन की फूटती सी प्रभा है ।।५७।।

साँचे ढाला सकल वपु है दिव्य सौदर्याशाली ।
सत्पुष्पो मी सुरभि उस की प्राण सपोपिका है ।
दोनों कंधे वृषभ - वर से हैं बड़े ही सजीले ।
लम्बी बॉहि कलभ-कर सी शक्ति की पेटिका है ॥५८॥

राजाओ सा शिर पर लसा दिव्य आपीड होगा ।
शोभा होगी उभय श्रुति में स्वर्ण के कुण्डलो की ।
नाना रत्नाकलित भुज में मंजु केयूर होगे ।
मोतीमाला लसित उनका कम्बु सा कंठ होगा ॥५९॥