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प्रियप्रवास

जाते ही छू कमलदल से पॉव को पूत होना ।
काली काली कलित अलके गण्ड शोभी हिलाना ।
क्रीड़ाये भी ललित करना ले दुकूलादिको को ।
धीरे धीरे परस तन को प्यार की बेलि बोना ॥६६॥

तेरे मे है न यह गुण जो तू व्यथाये सुनाये ।
व्यापारो को प्रखर मति और युक्तियो से चलाना ।
बैठे जो हो निज सदन में मेघ सी कान्तिवाले ।
तो चित्रो को इस भवन के ध्यान से देख जाना ॥६७॥

जो चित्रो मे विरह - विधुरा का मिले चित्र कोई ।
तो जा जाके निकट उसको भाव से यो हिलाना ।
प्यारे हो के चकित जिससे चित्र की ओर देखे ।
आशा है यो सुरति उनको हो सकेगी हमारी ॥६८॥

जा कोई भी इस सदन मे चित्र उद्यान का हो ।
औ हो प्राणी विपुल उसमे घूमते बावले से ।
तो जाके सनिकट उसके औ हिला के उसे भी ।
देवात्मा को सुरति ब्रज के व्याकुलो की कराना ॥६९।।

कोई प्यारा-कुसुम कुम्हला गेह मे जो पड़ा हो ।
तो प्यारे के चरण पर ला डाल देना उसीको ।
यो देना ऐ पवन बतला फूल सी एक बाला ।
म्लाना हो हो कमल पग को चूमना चाहती है ॥७०॥

जो प्यारे मंजु - उपवन या वाटिका में खड़े हो ।
छिद्रो मे जा क्वणित करना वेणु सा कीचको को ।
यो होवेगी सुरति उनको सर्व गोपांगना की ।
जो है वंशी श्रवण रुचि से दीर्घ उत्कण्ठ होती ॥७१॥