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षष्ठ सर्ग

ला के फूले कमलदल को श्याम के सामने ही ।
थोडा थोडा विपुल जल में व्यग्र हो हो दुवाना ।
यों देना ऐ भगिनि जतला एक अंभोजनेत्रा ।
ऑखों को हो विरह - विधुरा वारि मे वोरती है ॥७२॥
 
धीर लाना वहन कर के नीप का पुष्प कोई ।
औं प्यारे के चपल ट्टग के सामने डाल देना ।
ऐसे देना प्रकट दिखला नित्य आशकिता हो ।
कैसी होती विरहवश में नित्य रोमाचिता हूँ ॥७३।।

बैठे नीचे जिस विटप के श्याम होवे उसीका ।
कोई पत्ता निकट उनके नेत्र के ले हिलाना ।
यो प्यारे को विदित करना चातुरो से दिखाना ।
मेरे चिन्ता-विजित चित का लान्त हो कॉप जाना ॥७४।।

सूखी जाती मलिन लतिका जो धरा में पड़ी हो ।
तो पॉबो के निकट उसको श्याम के ला गिराना ।
यो सीधे से प्रकट करना प्रीति से वंचिता हो ।
मेरा होना अति मलिन औ सूसते नित्य जाना ।।७५।।

कोई पत्ता नवल तरु का 'पीत जो हो रहा हो ।
तो प्यारे के हग युगल के सामने ला उसे ही ।
धीरे धीरे सँभल रखना भी उन्हें यो बताना ।
पीला होना प्रवल दुख से प्रोपिता सा हमारा ॥७६॥

यो प्यारे को विदित करके सर्व मेरी व्यथाये ।
धीरे धीरे वह्न कर के पॉच की धूलि लाना ।
थोड़ी सी भी चरणरज जो ला न देगी हमे तू ।
हा। कैसे तो व्यथित चित को वोध में दे सकेंगी ।।७७॥