पृष्ठ:प्रियप्रवास.djvu/१९

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
(१४)

के चुनने मे वैसा नहीं किया गया, तो पहले तो यह तर्क इस लिये उचित न होगा कि प्राकृत वाक्यो या श्लोको का ही अनुवाद तो संस्कृत मे नीचे दिया गया है। दूसरे में इस तर्क के समाधान के लिये कतिपय प्राकृत और सस्कृत के मनोहर श्लोको और वाक्यों को नीचे लिखता है। आप उनको मिलाइये, और देखिये कि दोनो की सरसता और कोमलता में कितना अन्तर है।

असारे सार मतिनो सारे चासार दस्सिनो ।
से सारे नाधि गच्छन्ति मिच्छा सकप्पगोचरा ॥१॥
अप्पमादेन मघवा देवानं सेद्वत गतो ।
अप्पमाद परा सन्ति पमादो गरहितो सदा ॥२॥
नपुप्पगधी पटिवातमेति न चन्दन तग्गर मल्लिका वा ।
सत च गधो पटिवातमेति सब्यादिसा सप्पुरिसोपवायति ॥३॥
उदक हि नयन्ति नेतिका उसुकारानमयन्ति तेजन ।
दारुनमयन्ति तच्छका अत्तान दमयन्ति पण्डिता ॥४॥
मासे मासे सहस्सेनयो यजेथ सत समम् ।
एक च भावितत्तान मुहुत्तमपि पूजये॥५॥—धम्मपद

रणन्त मणिणेउर झणझणन्तहारच्छड ।
कलक्कणिद किंकिणी मुहर मेलाडम्बर।
विलोल बलआवलीजणिदमजुसिंजारव।
णकस्समणमोहण ससिमुहीअहिन्दोलणम्॥६॥—कर्पूरमंजरी

****

अलिरसौ नलिनीवनवल्लभ कुमुदिनीकुलकेलिकलारस।
विधिवशेन विदेशमुपागत. कुटजपुष्परस बहुमन्यते॥१॥ केवानसन्तिभुवितामरसावतसाहसावलीबलयिनोवलसन्निवेगा। किंचातकोफलमवेक्ष्यसवज्रपातापौरन्दरीमुपगतोनववारिधाराम्॥२॥