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प्रियप्रवास

वसंततिलका छन्द
यो ही प्रबोध करते पुरवासियों का ।
प्यारी - कथा परम-शांत-करी सुनाते ।
आये ब्रजाधिप - निकेतन पास उधो ।
पूरा प्रसार करती करुणा जहाँ थी ।।१३२॥

मालिनी छन्द
करुण-नयन वाले खिन्न उद्विग्न ऊवे ।
नृपति सहित प्यारे बंधु औ सेवको के ।
सुअन-सुहृद-ऊधो पास आये यहाँ ही ।
फिर सदन सिधारे वे उन्हे साथ लेके ।।१३३।।

सुफलक-सुत ऐसा ग्राम मे देख आया ।
यक जन मथुरा ही से बड़ा-बुद्धिशाली ।
समधिक चित-चिता गोपजो मे समाई ।
सब-पुर-उर शंका से लगा व्यग्र होने ॥१३३।।

पल पल अकुला के दीर्घ - संदिग्ध होके ।
विचलित-चित से थे सोचते ग्रामवासी ।
वह परम अनूठे-रन आ ले गया था ।
अब यह ब्रज आया कौन सा रत्न लेने ॥१३५।।