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द्रुतविलम्बित छन्द
त्रि - घटिका रजनी गत थी हुई ।
सकल गोकुल नीरव - प्राय था ।
ककुभ व्योम समेत शनै: शनैः ।
तमवती बनती व्रज - भूमि थी ॥१॥
ब्रज - धराधिप मौन - निकेत भी ।
बन रहा अधिकाधिक - शान्त था ।
तिमिर भी उसके प्रति - भाग मे ।
स्त्र - विभुता करता विधि - बद्ध था ॥२॥
हरि - सखा अवलोकन - सूत्र से ।
ब्रज - रसापति - द्वार - समागता ।
अब नहीं दिखला पड़ती रही ।
गृह - गता - जनता अति शंकिता ।।३।।