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प्रियप्रवास

सकल - श्रांति गॅवा कर पंथ की ।
कर समापन भोजन की क्रिया ।
हरिं सखा अधुना उपनीत थे ।
धुति - भरे - सुथरे - यक - सद्म मे ।।४॥

कृश - कलेवर चिन्तित व्यस्त धी ।
मलिन आनन खिन्नमना दुखी ।
निकट ही उनके ब्रज - भूप थे ।
विकलताकुलता - अभिभूत से ॥५॥
मन्दाक्रान्ता छन्द
आवेगो से विपुल विकला शीर्ण काया कृशांगी ।
चिन्ता-दग्धा व्यथित - हृदया शुष्क-ओष्ठा अधीरा ।
आसीना थी निकट पति के अम्बु - नेत्रा यशोदा ।
खिन्ना दीना विनत - वदना मोह - मग्ना मलीना ।।
द्रुतविलम्बित छन्द
अति - जरा - विजिता बहु-चिन्तिता ।
विकलता - ग्रसिता सुख - वंचिता ।
सदन मे कुछ थी परिचारिका ।
अधिकृता - कृशता · अवसन्नता ॥७॥

मुकुर उज्ज्वल - मंजु निकेत मे ।
मलिनता - अति थी प्रतिविम्बिता ।
परम - नीरसता - सह - आवृता ।
सरसता - शुचिता - युत - वस्तु थी ॥८॥

परम - आदर - पूर्वक प्रेम से ।
विपुल - बात वियोग - व्यथा - हरी ।
हरि - सखा कहते इस काल थे ।
बहु दुखी अ - सुखी ब्रज - भूप से ॥९॥