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दशम सर्ग

होता राका - शशि उदय था फूलता पद्म भी था ।
प्यारी - धारा उमग बहती चारु - पीयूष की थी ।
मेरा प्यारा तनय जब था, गेह मे नित्य ही तो ।
वंशी - द्वारा मधुर - तर था स्वर्ग संगीत होता ॥४६॥

ऊधो मेरे दिवस अब वे हाय ! क्या हो गये है ।
हा! यो मेरे सुख - सदन को कौन क्यो है गिराता ।
वैसे प्यारे - दिवस अब मै क्या नहीं पा सकूॅगी ।
हा!क्या मेरी न अब दुख की यामिनी दूर होगी ॥४७॥

ऊधो मेरा हृदय - तल था एक उद्यान - न्यारा ।
शोभा देती अमित उसमे कल्पना - क्यारियाँ थी ।
न्यारे - प्यारे - कुसुम कितने भाव के थे अनेकों ।
उत्साहो के विपुल - विटपी थे महा मुग्धकारी ।।४८।।

सञ्चिन्ता की सरस - लहरी - संकुला - वापिका थी ।
नाना चाहे कलित - कलियाँ थी लताये उमंगे ।
धीरे धीरे मधुर हिलती वासना - वेलियाँ थीं ।
सद्वांछा के विहग उसके मंजु- भाषी बड़े थे ।।४९।।

भोला-भाला - मुख सुत - वधू-भाविनी का सलोना ।
प्रायः होता प्रकट उसमें फुल्ल - अम्भोज - सा था ।
बेटे द्वारा सहज - सुख के लाभ की लालसाये ।
हो जाती थी विकच बहुधा माधवी- पुष्पिता सी ॥५०॥

प्यारी - आशा - पवन जब थी डोलती स्निग्ध हो के ।
तो होती थी अनुपम - छटा बाग के पादपो की ।
हो जाती थीं सकल लतिका - वेलियाँ शोभनीया ।
सद्भावो के सुमन वनते थे बड़े सौरभीले ॥५१॥