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प्रियप्रवास



हितैषणा से निज - जन्म - भूमि की ।
अपार - आवेश हुआ ब्रजेश को ।
बनी महा बंक गॅठी हुई भवें ।
नितान्त - विस्फारित नेत्र हो गये ॥२३॥

इसी घड़ी निश्चित श्याम ने किया ।
सशंकता त्याग अशंक - चित्त से ।
अवश्य निर्वासन ही विधेय है ।
भुजंग का भानु - कुमारिकांक से ।।२४॥

अतः करूँगा यह कार्य मै स्वयं ।
स्व - हस्त मे दुर्लभ प्राण को लिये ।
स्व - जाति औ जन्म-धरा निमित्त मैं ।
न भीत हूँगा विकराल - व्याल से ॥२५॥

सदा करूँगा अपमृत्यु सामनाक्ष ।
स - भीत हूँगा न सुरेन्द्र - वज्र से ।
कभी करूॅगा अवहेलना न मै ।
प्रधान • धर्माङ्ग - परोपकार की ॥२६॥

प्रवाह होते तक शेष - श्वास के ।
स - रक्त होते तक एक भी शिरा ।
स - शक्त होते तक एक लोम के ।
किया करूँगा हित सर्वभूत का ॥२७॥

निदान न्यारे - पण सूत्र मे बँधे ।
ब्रजेन्दु आये दिन दूसरे यही ।
दिनेश - आभा इस काल - भूमि को ।
बना रही थी महती - प्रभावती ॥२८॥