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प्रियप्रवास

अगम्य - अत्यन्त समीप शैल के ।
जहाँ हुआ कानन था, ब्रजेन्द्र ने ।
कुटुम्ब के साथ वहीं अहीश को ।
सदर्प दे के यम - यातना तजा ।। ४ ।।

न नाग काली तब से दिखा पड़ा ।
हुई तभी से यमुनाति निर्मला ।
समोद लौटे सब लोग सद्म को ।
प्रमोद सारे - ब्रज - मध्य छा गया ॥४८॥

अनेक यो है । कहते फणीश को ।
स - वंश मारा वन मे मुकुन्द ने ।
कई मनीषी यह है विचारते ।
छिपा पड़ा है वह गत मे किसी ॥४९॥

सुना गया है यह भी अनेक से ।
पवित्र - भता - ब्रज - भूमि त्याग के ।
चला गया है वह और ही कही ।
जनोपघाती विष - दन्त - हीन हो ॥५०॥

प्रवाद जो हो यह किन्तु सत्य है ।
स - गर्व मै हूँ कहता प्रफुल्ल हो ।
ब्रजेन्दु से ही ब्रज - व्याधि है टली ।
बनी फणी - हीन पतंग - नन्दिनी ॥५१॥

वही महा - धीर असीम - साहसी ।
सु - कौशली मानव-रत्न दिव्य-धी ।
अभाग्य से है ब्रज से जुदा हुआ ।
सदैव होगी न व्यथा - अतीव क्यो ॥५२॥