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प्रियप्रवास

दिवस एक प्रभंजन का हुआ।
अति - प्रकोप, घटा नभ मे घिरी।
बहु - भयावह - गाढ़ - मसी - समा।
सकल - लोक प्रकंपित - कारिणी ॥१८॥

अशनि - पात - समान दिगन्त मे।
तव महा - रव था बहु व्यापता ।
कर विदारण वायु प्रवाह का।
दमकती नभ मे जब दामिनी ॥१९॥

मथित चालित ताड़ित हो महा।
अति - प्रचंड - प्रभंजन - वेग से।
जलद थे दल के दल आ रहे।
धुमड़ते घिरते व्रज - घेरते ॥२०॥

तरल - तोयधि - तुंग - तरंग से।
निविड़ - नीरद थे घिर घूमते ।
प्रबल हो जिनकी बढ़ती रही।
असितता - घनता - रखकारिता ॥२॥

उपजती उस काल प्रतीति थी।
प्रलय के घन आ ब्रज मे घिरे ।
गगन - मण्डल मे अथवा जमे ।
सजल कज्जल के गिरि कोटिशः ॥२२॥

पतित थी ब्रज - भू पर हो रही।
प्रति - घटी उर - दारक - दामिनी।
असह थी इतनी गुरु - गर्जना।
सह न था सकता पवि - कर्ण भी ॥२३॥