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द्वादश सर्ग

सु - फल जो मिलता इस काल है ।
समझना न उसे लघु चाहिये ।
बहुत हैं, पड़ संकट - स्रोत मे ।
सहस मे जन जो शत भी बचे ॥४८॥

इस लिये तज निध - विमूढ़ता ।
उठ पड़ो सब लोग स-यत्न हो ।
इस महा- भय - संकुल काल मे ।
बहु - सहायक जान ब्रजेश को ।।१४९॥

सुन स-ओज सु-भाषण श्याम का ।
बहु - प्रबोधित हो जन - मण्डली ।
गृह गई पढ़ मंत्र प्रयत्न का ।
लग गई गिरि ओर प्रयाण मे ॥५०॥

बहु - चुने - दृढ़ - वीर सु - साहसी ।
सबल - गोप लिये बलवीर भी ।
समुचित स्थल मे करने लगे। ।
सकल की उपयुक्त सहायता ॥५१॥

सलिल प्लावन से अब थे बाद ।
लघु - बड़े बहु - उन्नत पंथ जो ।
सब उन्ही पर हो स - सतर्कता ।
गमन थे करते गिरि - अंक मे ।।५२।।

यदि ब्रजाधिप के प्रिय - लाडिले ।
पतित का कर थे गहते कही ।
उदक मे घुस तो करते रहे ।
वह कहीं जल - बाहर मग्न, को ।।५३।।
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