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प्रियप्रवास

पहुँचते बहुधा उस भाग में।
बहु अकिचन थे रहते जहाँ।
कर सभी सुविधा सब - भॉति की।
वह उन्हें रखते गिरि - अंक मे ॥५४॥

परम - वृद्ध असम्बल लोक को।
दुख - मयी - विधवा रुज-ग्रस्त को।
बन सहायक थे पहुंचा रहे। ।
गिरि सु - गह्वर में कर यत्न वे ॥५५।।

यदि दिखा पड़ती जनता कही।
कु - पथ मे पड़ के दुख भोगती।
पथ - प्रदर्शन थे करते उसे।
तुरत' तो उस ठौर ब्रजेन्द्र जा ॥५६॥

जटिलता - पथ की तम गाढ़ता।
उदक - पात प्रभंजन भीमता।
मिलित थीं सब साथ, अतः घटी ।
दुख - मयी - घटना प्रति - पंथ में ॥५७।।

पर सु - साहस से सु - प्रबंध से।
ब्रज - विभूषण के जन एक भी।
तन न त्याग सका जल - मग्न हो।
मर सका गिर के न गिरीन्द्र से ।।१८।।

फलद - सम्बल- लोचन के लिये।
क्षणप्रभा अतिरिक्त न अन्य था।
तदपि साधन मे प्रति-कार्यो के।
सफलता ब्रज - वल्लभ को मिली ॥५९।।