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द्वादश सर्ग

परम - सिक्त हुआ वपु - वस्त्र था ।
गिर रहा शिर ऊपर वारि था ।
लग रहा अति उग्र-समीर था ।
पर विराम न था ब्रज - बन्धु को ॥६०॥

पहुँचते वह थे शर - वेग से ।
विपद - सकुल आकुल- ओक मे ।
तुरत थे करते वह · नाश भी ।
परम - वीर - समान विपत्ति का ॥६१॥

लख अलौकिक - स्फूर्ति - सु- दक्षता ।
चकित - स्तभित गोप - समूह था ।
अधिकतः धुंधता यह ध्यान था ।
ब्रज - विभूषण हैं शतशः वने ॥६२।।

स - धन गोधन को पुर ग्राम को ।
जलज - लोचन ने कुछ काल, मे ।
कुशल से गिरि - मध्य बसा दिया ।
लघु बना पवनादि - प्रमाद को ॥६३॥

प्रकृति क्रुद्ध छ सात दिनो रही ।
कुछ प्रभेद हुआ न प्रकोप मे ।
पर स - यत्न रहे वह सर्वथा ।
तनिक - क्लान्ति हुई न ब्रजेन्द्र को ॥६४।।

प्रति - दरी प्रति - पर्वत - कन्दरा ।
निवसते जिनमे ब्रज - लोग थे ।
चहु - सु - रक्षित थी ब्रज - देव के ।
परम - यत्न सु-चार प्रबन्ध से ॥६५।।