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प्रियप्रवास

विधि - वश यदि तेरी धार मे आ गिरूँ मै ।
मम तन ब्रज की ही मेदिनी मे मिलाना ।
उस पर अनुकूला हो, बड़ी मंजुता से ।
कल - कुसुम अनूठी - श्यामता के उगाना ।।१२५।।

घन - तन - रत मै हूँ त असेतांगिनी है ।
तरलित - उर तू है चैन मै हूँ न पाती ।
अयि अलि बन जात शान्ति - दाता हमारी ।
अति - प्रतपित मै हूँ ताप तू है भगाती ।।१२६॥

मन्दाक्रान्ता छन्द
रोई आ के कुसुम - ढिग औ भृङ्ग के साथ बोली ।
वंशी - द्वारा - भ्रमित बन के बात की कोकिला से।
देखा प्यारे कमल - पग के अंक को उन्मना हो ।
पीछे आयी तरणि - तनया - तीर उत्कण्ठिता सी ॥१२७।।
द्रुतविलम्बित छन्द
तदुपरान्त गई गृह - बालिका ।
व्यथित ऊधव को अति ही बना ।
सब सुना सब ठौर छिपे गये ।
पर न बोल सके वह अल्प भी ॥१२८॥