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पञ्चदश सर्ग

अनार मे औ कचनार मे बसी ।
ललामता थी अति ही लुभावनी ।
बड़े लसे लोहित - रंग - पुष्प से ।
पलाश की थी अपलाशता ढकी ।।११।।

स - सौरभा लोचन की प्रसादिका ।
वसंत - वासंतिकता - विभूषिता ।
विनोदिता हो बहु थी विनोदिनी ।
प्रिया - समा मंजु - प्रियाल - मंजरी ॥१२।।

दिशा प्रसन्ना महि पुष्प - संकुला ।
नवीनता - पूरित पादपावली ।
वसंत मे थी लतिका सु - यौवना ।
अलापिका पंचम - तान कोकिला ‌‌।।१३।।

अपूर्व - स्वर्गीय - सुगंध मे सना ।
सुधा बहाता धमनी - समूह मे ।
समीर आता मलयाचलांक से ।
किसे बनाता न विनोद - मग्न था ॥१४॥

प्रसादिनी - पुष्प सुगंध - वद्धिनी ।
विकाशिनी वेलि लता विनोदिनी ।
अलौकिकी थी मलयानिली क्रिया ।
विमोहिनी पादप पंक्ति - मोदिनी ॥१५॥

वसंत - शोभा प्रतिकूल थी बड़ी ।
वियोग - मग्ना ब्रज - भूमि के लिये ।
बना रही थी उसको व्यथामयी ।
विकाश पाती वन - पादपावली ।।१६।।