पृष्ठ:प्रियप्रवास.djvu/३३१

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
सप्तदश सर्ग

मन्दाक्रान्ता छन्द
ऊधो लौटे नगर मथुरा मे कई मास बीते ।
आये थे वे ब्रज - अवनि में दो दिनो के लिये ही।
आया कोई न फिर ब्रज मे औ न गोपाल आये।
धीरे-धीरे निशि - दिन लगे बीतने व्यग्रता से ॥१॥

बीते थोड़ा दिवस ब्रज मे एक सम्वाद आया।
कन्याओ से निधन सुन के कंस का कृष्ण द्वारा।
जाना ग्रामो पुर नगर को फेंकता भू - कॅपाता।
सारी सेना सहित मथुरा है जरासन्ध आता ॥२॥

ए बाते ज्यो ब्रज - अवनि में हो गई व्यापमाना।
सारे प्राणी अति व्यथित हो, हो गये शोक - मग्न ।
क्या होवेगा परम - प्रिय की आपदा क्यो टलेगी।
ऐसी होने प्रति - पल लगी तर्कनाये उरो में ।। ३॥