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प्रियप्रवास

तू केकी को स्व - छवि दिखला है महा मोद देता ।
वैसा ही क्यो मुदित तुझसे है पपीहा न होता ।
क्यो है मेरा हृदय दुखता श्यामता देख तेरी ।
क्यो ए तेरी विविध मुझको मूर्तियाँ दीखती है ॥२२॥

ऐसी ठौरो पहुँच बहुधा राधिका कौशलो से ।
ए बाते थी पुलक कहती उन्मना - बालिका से ।
देखो प्यारी भगिनि भव को प्यार की दृष्टियो से ।
जो थोड़ी भी हृदय - तल मे शान्ति, की कामना है ।।२३।।

ला देता है जलद हग मे श्याम की मंजु - शोभा ।
पक्षाभा से मुकुट - सुषमा है कलापी दिखाता ।
पी का सच्चा प्रणय उर मे ऑकता है पपीहा ।
ए बाते है सुखद् इनमे भाव क्या है व्यथा का ॥२४॥

होती राका विमल - विधु से बालिका जो विपन्ना ।
तो श्री राधा मधुर - स्वर से यो उसे थी सुनाती ।
तेरा होना विकल' सुभगे बुद्धिमत्ता नहीं है ।
क्या प्यारे की वदन - छवि तू इन्दु मे है न पाती ।।२५।।

मालिनी छन्द
जब कुसुमित होती वेलियाँ औ लताये ।
जब ऋतुपति आता आम की मंजरी ले ।
जब रसमय होती मेदिनी हो मनोज्ञा ।
जब मनसिज लाता मत्तता मानसो मे ।।२।।

जब मलय - प्रसूता वायु आती सु-सिक्ता ।
जब तरु कलिका औ कोंपलो से लुभाता ।
जब मधुकर - माला गॅजती कुंज में थी ।
जब पुलकित हो हो कूकती ,कोकिलाये ॥२७॥