पृष्ठ:प्रियप्रवास.djvu/४०

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जो शरीर बड़ा प्यारा है, उसीको देखिये, उसमे कितना मल है। चन्द्रमा में कंलक है, सूर्य में धब्बे है, फूल में कीड़े है, तो क्या ये संसार की आदरणीय वस्तुओ में नहीं है ? वरन् जितना इनका आदर है अन्य का नही है । कवि-कर्म-कुशल कालिदास की रचना। इतनी अपूर्व और प्यारी है, इतनी सरस और सुन्दर है, इतनी उप-देशमय और उपकारक है, कि उसमे यदि एक दोष नहीं सैकड़ो दोष होवे, तो भी वे स्निग्ध-पत्रावली-परिशोभित, मनोरम-पुष्पफल-भार-विनम्र पादप के, दश पॉच नीरस, मलीन, विकृत पत्तो समान दृष्टि डालने योग्य न होगे। फिर उन दोषों के विषय में बात बनाने से क्या लाभ ? मैं यह कह रहा था कि कवि कर्म नितान्त दुरूह है। अलौकिक प्रतिभाशाली कालिदास जैसे जगन्मान्य कवि भी इस दुरूहता-वारिधि-सन्तरण में कभी-कभी क्षम नहीं होते। जिनका पदानुसरण करके लोग साहित्य-पथ में पॉव रखना सीखते हैं, उन हमारे संस्कृत और हिन्दी के धुरन्धर और मान्य साहित्याचार्यों की मति भी इस सकीर्ण स्थल पर कभी-कभी कुण्ठित होती है,और जब ऐसो की यह गति है तो साधारण कवियो की कौन कहे ? मैं कवि कहलाने योग्य नही, टूटी-फूटी कविता करके कोई कवि नहीं हो सकता, फिर यदि मुझसे भ्रम प्रमाद हो, यदि मेरी कविता में अनेक दोष होवे तो क्या आश्चर्य । अतएव आगे जो मै लिखूॅगा, उसके लिखने का यह प्रयोजन नहीं है, कि मै रूपान्तर से अपने दोषों को छिपाना चाहता हूँ——प्रत्युत, उसके लिखने का उद्देश्य कतिपय शब्दों के प्रयोग पर प्रकाश डालना मात्र है।

कतिपय क्रिया

हिन्द गद्य में देखने के अर्थ में अधिकांश देखना धातु के रूपो का ही व्यवहार होता है, कोई-कोई कभी अवलोकना, विलोकना, दरसना, जोहना, लखना धातु के रूपो को भी प्रयोग करते हैं,