पृष्ठ:प्रियप्रवास.djvu/४३

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गुरु नियत संख्या से आते है, इस लिये यदि उन्होने दो दीर्घ रखने के लिये कविता मे उसका, उसके, जिसकी के स्थान पर उस्का, उस्के, जिस्की लिखा तो उनका यह कार्य विवशतावश है। ऐसे स्थलों पर यह प्रयोग अधिक निन्दनीय नहीं है, किन्तु गद्य में अथवा वहाँ, जहाँ कि शुद्ध रूप में ये शब्द लिखे जा सकते हैं, इन शब्दो का सयुक्त रूप से प्रयोग में उचित नहीं समझता, इसके निम्न लिखित कारण है——

१——यह कि गद्य की भाषा में जो शब्द जिस रूप में व्यवहृत होते है, मुख्य अवस्थाओ को छोडकर पद्य की भाषा में भी उन शब्दो का उसी रूप मे व्यवहृत होना समीचीन, सुसंगत और बोधगम्य होगा।

२——यह कि उसको, जिसमे, जिसको इत्यादि शब्दो को प्राचीन और आधुनिक अधिकांश गद्य-पद्य-लेखक इसी रूप में लिखते आते है, फिर कोई कारण नहीं है कि इस प्रचलित प्रणाली का बिना किसी मुख्य हेतु के परित्याग किया जावे।

३——यह कि हिन्दी भाषा की स्वाभाविक प्रवृत्ति यथा संभव सयुक्ताक्षरत्व से बच कर रहने की है, अतएव उसके सर्वनामो इत्यादि को जो कि समय-प्रवाह-सूत्र से संयुक्त रूप में नहीं हैं, संयुक्त रूप में परिणत करना दुर्बोधता और क्लिष्टता सम्पादन करना होगा।

अब रही यह बात कि यदि वास्तव में हिन्दी में कुछ अकारान्त वर्ण, शब्द-खण्ड और धातु-चिह्न के प्रथम के अक्षर हलन्तवत् बोले जाते है, तो कोई कारण नहीं है, कि उच्चारण के अनुसार वे लिखे न जावे । इस विषय में मेरा यह निवेदन है कि इन वर्गों, शब्द-खण्डो और धातु-चिह्नो के प्रथम के अक्षरों का ऐसा उच्चारण हिन्दी के जन्म-काल से ही है, या कुछ काल से हो गया है ? और यदि जन्मकाल से ही है, तो इसके व्याकरण-रचयिताओ और