पृष्ठ:प्रियप्रवास.djvu/४६

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पर इ्त्ने पर् भी तो नहिं मन हुआ शान्त उनका।
बस् अब् क्या करना था जब जतन कोई नहिं चला।

इस पद्य में इतने को इत्ने्, पर को पर्, बस को बस् और अब को अब् किया गया है। यह संस्कृत का शिखरिणी छंद है। यगण, भगण, नगण, सगण, मगण लघु गुरु का शिखरिणी छंद होता है। श्रुतबोध में इसका लक्षण यह लिखा है——

यदि प्राच्यो ह्रस्वत्तुलितकमले पञ्चगुरवः।
ततो वर्णा पञ्च प्रकृतिसुकुमाराङ्गि लघव॥
त्रयोन्ये चोपान्त्या सुतनुजघने भोगसुभगे।
रसैरीशै यस्या भवति विरति सा शिखरिणी॥

इस लिये यदि ऊपर के दोनो चरण निम्नलिखित रीति से लिखे जावे तो निर्दोष होगे, जैसे वे लिखे गये हैं, उस रीति से लिखने मे छन्दो-भङ्ग होता है।

परित्ने पर् भी तो नहिं मन हुआ शान्त उनका।
बसब क्या कर्ना था जब जतन कोई नहिं चला॥

प्रथम प्रकार से लिखने में पहले चरण में दो लघु के उपरान्त चार गुरु पड़ते है, किन्तु उक्त नियमानुसार एक लघु के पश्चात् पाँच गुरु होने चाहिये। इस लिये यदि यह चरण खण्ड 'परित्ने पर भी' कर दिया जावे तो दोषनिवृत्त हो जाता है। इसी प्रकार 'बस् अब क्या करना था। यो लिखने से दूसरे चरण के प्रथम खण्ड में पहले तीन गुरु फिर दो लघु और बाद को दो गुरु पड़ते है, अतएव यह चरण-खण्ड भी सदोष है, यह जब यो लिखा जावे कि 'वसब क्या कर्ना था' तो ठीक होगा। किन्तु यह बतलाइये कि इस प्रकार शब्दविन्यास कहाँ तक समुचित होगा। सस्कृत के यत्, तत् की भाँति पर को पर्, बस को बस् और अब को अब् लिख कर एक गुरु बना लेना कहाँ तक युक्ति-संगत और हिन्दी भाषा की प्रणाली के अनुकूल