पृष्ठ:प्रियप्रवास.djvu/४८

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से उठाया है, उसको भी मै नीचे लिखता हूँ, आप लोग इसे भी देखिये——

पर इस्से पूछ ले क्या इसका मन है ।
तू सोचे जा न कर चिन्ता कुछ इसकी ।।

इस पद्य में इससे को इस्से कर दिया गया है, किन्तु दोनों की ही चार मात्राये है, इस लिये इस पद्य मे यदि इस्से के स्थान पर 'इससे ही रहता तो भी कोई अन्तर न पड़ता जैसा कि पद्य के दूसरे चरण के इसकी, और इसी चरण के ‘इसका' के इसी । रूप मे लिखे जाने से कोई अन्तर नहीं पड़ा। यह उन्नीस मात्रा का, मात्रिक छन्द है, इसके चरणो में दो दो मात्रा अधिक है। इससे । जो तौल कर न पढ़ा जावे, तो इनमे छन्दोभङ्ग होता है। परन्तु यह छन्दोभङ्ग-दोष उनमे के इससे इसका, इसकी को इस्से, इस्का, इस्की कर देने से दूर नहीं हो सकता, क्योकि मात्रा दोनो रूपो मे ही समान है फिर उसको यह रूप देने से क्या लाभ ? हॉ, यदि वे निम्नलिखित प्रकार से लिखे जावे तो निस्सन्देह उनकी सदोषता दूर हो जावेगी, परन्तु ऐसी अवस्था मे शब्दार्थ के समझने मे कितनी उलझन होगी, यह अविदित नही है।

प, इससे पूछ ले क्या इसक मन है ।
तु सोचे जा, न कर चिन्ता कुछिसकी ।।

संस्कृत के वर्णवृत्त और हिन्दी के मात्रिक छन्दो की नियमावली इतनी सुन्दर और तुली हुई है, और उसमे लघु गुरु वर्णों के संस्थान और मात्राओ की सख्या इस रीति से नियत की गई है कि यदि सावधानी से कार्य किया जावे, तो उनकी रचता मे छन्दोभङ्ग हो ही नहीं सकता। दूसरी बात यह कि जब पद्य-रचना हो गई तो जैसे चाहिये पढ़िये, दूसरे से पढ़वाइये, उसके पढने में उलझन