पृष्ठ:प्रियप्रवास.djvu/४९

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होहीगी नहीं। क्योकि उसमे एक लघु गुरु अक्षर का हेर फेर नहीं, एक मात्रा घट बढ नहीं, फिर छन्दोभङ्ग कैसे होगा, और जब छन्दोभन नहीं होगा तो उलझन क्यो होगी? किन्तु उर्दू पद्योकी रचना वजन पर होती है, न उनमे लघु, गुरु का नियम है, न मात्राओ का; केवल कुछ वजन नियत है, उन्ही वजनो को कैंडा मान कर उसी कैडे पर उसमे कविता की जाती है । जैसे, एक वजन बताया गया, “मफऊलफायलातुन मफऊलफायलातुन" अब इसी वजन पर उर्दू के कवि को कविता करनी पड़ती है, उसको यह ज्ञात नहीं है कि कितने अक्षर और मात्रा से इस वजन का छन्द बनेगा। यह प्रणाली उसने अरबी और फारसी से ली है। अभ्यास एक अद्भुत वस्तु है, उससे सब कुछ हो सकता है, और उसी के द्वारा केवल वजन के आश्रय से अरबी फारसी में बिना छन्दोभङ्ग के बड़ी सुन्दर कविताये लिखी गई हैं। उनमे एक मात्रा की भी घटी-बढ़ी नहीं पाई जाती, वजन पर ही उनकी अधिकांश कविता छन्दो-गति विषय में सर्वथा निर्दोष हैं। परन्तु उर्दू में केवल वजन ने बड़ी उलझन पैदा की है, मुख्य कर उन लोगो के लिये जो वर्णवृत्त और मातृक छन्द पढ़ने के अभ्यस्त है। उर्दू कवियों ने वजन पर काम किया है, इसलिये भाषा की क्रियाओ और शब्दों को बेतरह दबा-दुबू और तोड़-फोड़ डाला है । क्योकि वजन के कैडे पर वे प्राय. ठीक नहीं उतर सके। उर्दू भाषा में लिखे गये छन्द को कोई मनुष्य उस समय तक शुद्धता से कदापि नही पढ़ सकता, जब तक कि उसको वजन न ज्ञात हो । यदि कोई अक्षरों और मात्राओ के सहारे शब्दो का शुद्ध उच्चारण करके उर्दू के पद्यो को पढ़ना चाहेगा, तो अधिकांश स्थलों पर उसका पतन होगा। मिर्जा गालिब का एक शेर है——

यह कहाँ की दोस्ती है जो बने हैं दोस्त नासेह ।
कोई चाराकार होता कोई गम गुसार होता ॥